India's largest dams history in Hindi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को गुजरात के नर्मदा जिले स्थित सरदार सरोवर बांध का जायजा लेने वाले हैं। भारत के इस सबसे बड़े डैम को बनाने की पहल आजादी से भी पहले हुई थी लेकिन पूरा हुआ 2017 में। आइए एक नजर डालते हैं, सरदार सरोवर बांध की कहानी पर।


जब बात पावर की हो तो सबसे पहले ख्याल आता है बिजली और पानी का। किसी भी देश की तरक्की के लिए इन दोनों चीजों का होना जरूरी है। कई मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट्स हर साल चलाए जाते हैं इस जरूरत को पूरा करने के लिए। मतलब विकासशील देश से विकसित देश बनने की पूरी प्रक्रिया ही किसी देश के ऊर्जा क्षेत्र पर निर्भर करती है।


भारत में विकास बहुत तेजी से हो रहा है। विकास के साथ-साथ बिजली और पानी की जरूरतें भी बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में भारत के कुछ विशाल बांध इस जरूरत को पूरा कर रहे हैं। यह हैं आर्किटेक्चर का बेजोड़ नमूना।


There are more than 4000 small and big dams in India. There are countless number of dams in the world. Let's tell you about some such dams. Uttarakhand has India's highest and largest Tehri dam. Tehri's name is also recorded in Asia's second highest and highest record of the world's tallest dam.



  1. सरदार पटेल ने 1945 में सरोवर बांध को बनाने की पहल की थी, 1961 में जवाहर लाल नेहरू ने रखी नींव

  2. पर्यावरण और सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरोध की वजह से दशकों तक लटका रहा प्रॉजेक्ट

  3. 17 सितंबर 2017 को पीएम मोदी ने भारत के इस सबसे बड़े बांध को देश को किया था समर्पित

  4. सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 138 मीटर है, इसके 30 गेट हैं, 4 राज्यों- गुजरात, एमपी, महाराष्ट्र और राजस्थान को फायदा


आजादी से पहले हुई थी पहल
सरदार सरोवर बांध को बनाने की पहल आजादी से पहले ही हो गई थी। 1945 में सरदार पटेल ने इसके लिए पहल की थी। 5 अप्रैल 1961 को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसकी नींव रखी लेकिन तमाम वजहों से यह प्रॉजेक्ट लटका रहा। 1979 में नर्मदा वॉटर डिस्पुट ट्राइब्यूनल ने डैम की ऊंचाई 138.38 मीटर तय की और इसका निर्माण शुरू हुआ। 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने लोगों के विस्थापन और पर्यावरण चिंताओं को लेकर इसके निर्माण पर रोक लगा दी। 2000-2001 में शीर्ष अदालत ने इसे बनाने की सशर्त अनुमति दे दी और ऊंचाई को घटाकर 110.64 मीटर करने का आदेश दिया। हालांकि, 2006 में डैम की ऊंचाई को बढ़ाकर 121.92 मीटर और 2017 में 138.90 मीटर करने की इजाजत मिल गई। इस तरह, सरदार सरोवर डैम को पूरा होने में करीब 56 साल लगे। 17 सितंबर 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे देश को समर्पित किया।


देश का सबसे बड़ा बांध, खर्च हुए 65 हजार करोड़
सरदार सरोवर डैम की ऊंचाई 138 मीटर है जो देश में बना सबसे ऊंचा बांध है। इसका शुरुआती बजट 93 करोड़ रुपये रखा गया था लेकिन इसे बनाने में 65 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए। इसे बनाने में 86.20 लाख क्यूबिक मीटर कंक्रीट का इस्तेमाल हुआ। बांध में कुल 30 दरवाजे हैं और हर दरवाजे का वजन 450 टन है। डैम की वॉटर स्टोरेज कपैसिटी 47.3 लाख क्यूबिक लीटर है।


4 राज्यों को फायदा
सरदार सरोवर बांध से 4 राज्यों गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान को फायदा पहुंचता है। इससे 18.45 लाख हेक्टेयर जमीन को सिंचाई का लाभ पहुंचता है। सिंचाई की बात करें तो इससे सबसे अधिक फायदा गुजरात को है। यहां के 15 जिलों के 3137 गांवों के 18.45 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकती है। बिजली का सबसे अधिक 57 प्रतिशत हिस्सा मध्य प्रदेश को मिला है। महाराष्ट्र को 27 प्रतिशत, जबकि गुजरात को 16 प्रतिशत बिजली मिल रहा है। राजस्थान को सिर्फ पानी मिलेगा।


देश के सबसे विवादित बांधों में भी
सरदार सरोवर बांध न सिर्फ देश का सबसे बड़ा बांध है बल्कि सबसे विवादित भी। पर्यावरण और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 1980 के दशक से ही इसके खिलाफ आंदोलन चलाया। यही वजह रही कि सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में इसके निर्माण पर रोक लगा दी थी। सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने इसके खिलाफ बहुचर्चित नर्मदा बचाओ आंदोलन का नेतृत्व किया।



भारत के सबसे ऊंचे बांध के निर्माण का विरोध क्यों हो रहा है?


महाकाली नदी पर देश का सबसे ऊंचा बांध बनाने की पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना प्रस्तावित है. इस परियोजना की नीव 1996 में हुई भारत-नेपाल महाकाली जल संधि में पड़ी. गौरतलब है कि महाकाली नदी दोनों देशों की सीमा पर है.


हालांकि इस परियोजना की प्रस्तावना पांच दशक पुरानी है. फिलहाल संधि को 20 साल हो जाने के बावजूद यह परियोजना इसीलिए लटकी पड़ी थी क्योंकि नेपाल में इस संधि को लेकर समर्थन नहीं था.


आखिर में जब 2014 में दोनों देशों की सरकारों ने परियोजना के क्रियान्वयन के लिए पंचेश्वर विकास प्राधिकरण बनाया तब यह तय हुआ था कि विवादित मुद्दों पर डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) बनने के बाद स्पष्टता आएगी.


अभी वाप्कोस कंपनी द्वारा बनाई गई आधी-अधूरी डीपीआर को देखते हुए यह तो साफ है कि परियोजना से जुड़े कई मूलभूत मुद्दों पर कोई जानकारी नहीं है, दो देशों में आपसी समझ बनना तो दूर की बात है.


ऐसे में राज्य सरकार पुनर्वास नीति बनाने में हड़बड़ी कर रही है, अफरातफरी में पर्यावरण मंजूरी के लिए जन सुनवाई भी करवा दी और प्रभावित क्षेत्र से वन मंजूरी के लिए एनओसी लेने का काम भी शुरू कर दिया जिसका लोग विरोध कर रहे हैं.


यही नहीं प्रभावित इलाके की सारी स्थानीय विकास परियोजनाओं को भी अघोषित तरीके से रोक कर रखा हुआ है जबकि महाकाली संधि पर ही प्रश्न चिह्न बना हुआ है.


हाल में आये पुनर्वास नीति पर उत्तराखंड मंत्रिमंडल के सुझावों और बयानों को देख कर यह तो स्पष्ट है कि पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना के लिए बनी डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट पूरी होने से कई कोसों दूर है.


मंत्रिमंडल ने स्वयं कुछ मूलभूत प्रश्न उठाए हैं जिनका जवाब नहीं होने तक पुनर्वास नीति बनाने का काम आगे बढ़ाना असंभव है.


उदाहरण के तौर पर मंत्रिमंडल ने वाप्कोस कंपनी को यह जानकारी देने के लिए कहा है कि परियोजना से मौजूदा सरकारी और सार्वजनिक संपत्तियों पर कितना प्रभाव पड़ेगा.


यह सवाल मूलभूत है और आश्चर्य की बात तो यह है कि इसका आंकलन किये बिना परियोजना का लागत लाभ विश्लेषण आखिर वाप्कोस ने कैसे किया?


लागत लाभ विश्लेषण में जो 13,700 हेक्टेयर जंगल और खेती की जमीन डूबने से होने वाला नुकसान है उसका भी कही कोई आंकलन नहीं है.


पर्यावरणीय प्रभावों की कीमत का आंकलन भी इसमें नहीं जुड़ा है. यदि पर्यावरणीय और सामाजिक कीमत की बात करें तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 315 मीटर ऊंचाई वाले इस बांध का विशाल जलाशय भौगोलिक रूप से सबसे संवेदनशील क्षेत्र में बनेगा जहां सिस्मिक हलचल होती रहती है.