शुरू होने से पहले ही अफगान-तालिबान वार्ता पर छाए संकट के बादल, आपसी मतभेद भी उभरे

काबुल। अमेरिका-तालिबान के बीच 29 फरवरी को हुए समझौते के बाद अब बारी अफगान सरकार की है। इसको लेकर उलटी गिनती भी शुरू हो गई है। दरअसल, समझौते के मुताबिक अफगान सरकार को दस दिनों के अंदर तालिबान से वार्ता शुरू करनी है। लेकिन अब तक इस वार्ता में शामिल होने वाले नेताओं की टीम तक तैयार नहीं हो सकी है। वहीं अफगानिस्‍तान के अखबार टोलोन्‍यूज के मुताबिक इस वार्ता से पहले ही अफगान राष्‍ट्रपति अशरफ गनी और चीफ एग्जिक्‍यूटिव अब्‍दुल्‍लाह अब्‍दुल्‍लाह में आपसी मतभेद भी पैदा हो गए हैं। ये मतभेद वार्ता की टीम के सदस्‍यों को लेकर है। अब्‍दुल्‍लाह सितंबर 2014 से फरवरी 2020 तक अफगानिस्‍तान की यूनिटी सरकार के चीफ एग्जिक्‍यूटिव थे। 



दरअसल, 10 मार्च को होने वाली इस वार्ता के लिए राष्‍ट्रपति गनी चाहते हैं कि टीम में आठ सदस्‍य हों। यदि इससे अधिक सदस्‍य इसमें शामिल हुए तो दल के अंदर की दूसरा दल बन जाएगा। उनका ये भी कहना है कि अगले पांच दिनों के अंदर इस काम को पूरा कर लेना चाहिए। उनके मुताबिक इस टीम के गठन की कवायद आपसी बातचीत के जरिए शुरू कर देनी चाहिए। वहीं अब्‍दुल्‍लाह ने गनी पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया है कि राष्‍ट्रपति शांति वार्ता में अपनी बात मनवाना चाहते हैं इसलिए इस प्रक्रिया में एकाधिकार बनाए रखना चाहते हैं। उन्‍होंने ये भी कहा कि इस सोच की वजह से किसी अफगान नेता ने दोहा में अफगानिस्‍तान की शांति को लेकर हुए समझौते में शिरकत नहीं की थी। 


तालिबान से संपर्क में सीक्रेट डेलिगेशन


इतना ही नहीं अब्‍दुल्‍लाह का ये भी कहना है कि अफगान सरकार का एक सीक्रेट डेलिगेशन लगातार तालिबान के संपर्क में है। अखबार की मानें तो कुछ अफगान नेता ये भी मानते हैं कि तालिबान से वार्ता को लेकर सरकार के अंदर ही मतभेद हैं, लेकिन, ये मतभेद समय रहते खत्‍म हो जाएंगे। हाई पीस काउंसिल सचिवालय के पूर्व प्रमुख अकरम खापुलवाक भी मानते हैं कि इस वक्‍त विदेशों और आंतरिक दबाव काफी ज्‍यादा है। उन्‍हें विश्‍वास है कि सरकार तालिबान से किसी समझौते तक जरूर पहुंचेगी। 


गनी के बयान से वार्ता पर संकट के बादल 


इन सभी के बीच तालिबान से होने वाली वार्ता से पहले ही राष्‍ट्रपति गनी के उस बयान ने राजनीतिक हलकों में जरूर भूचाल ला दिया है, जिसमें उन्‍होंने कहा है कि वार्ता से पहले सरकार किसी तालिबानी कैदी को नहीं छोड़ेगी। उनके मुताबिक ये समझौते में शामिल नहीं है। इतना ही नहीं उन्‍होंने ये भी कहा है कि तालिबान कैदियों की रिहाई का मुद्दा वार्ता का हिस्‍सा तो बन सकता है लेकिन इसको वार्ता के लिए शर्त के तौर पर भी मंजूर नहीं किया जाएगा। आपको यहां पर ये भी बता दें कि समझौते के मुताबिक अफगान सरकार 5000 कैदियों को रिहा करेगी, जबकि तालिबान 1000 अफगान कैदियों को रिहा करेगा। 


अमेरिकी सांसदों को तालिबान पर संदेह  


तालिबान से हुए करार के बावजूद अमेरिकी संसद का एक धड़ा ये भी मान रहा है कि अफगानिस्तान में शांति लाने के लिए उठाया गया कदम सही तो है लेकिन तालिबान अभी विश्वास करने लायक नहीं है। इन सांसदों का कहना है कि न्होंने कहा कि इसमें संदेह है कि आतंकवादी संगठन समझौते में अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करेगा। इसके अलावा खुद राष्‍ट्रपति ट्रंप ने भी कहा है कि यदि तालिबान समझौते की शर्तों से पीछे हटा तो वह अफगानिस्‍तान में और ज्‍यादा बड़ी फौज भेजेंगे।   


डरी हुई हैं महिलाएं  


तालिबान-अमेरिकी समझौते को लेकर अफगान महिलाएं भी आशंकित हैं। इन महिलाओं को सबसे बड़ा डर अपनी आजादी छिन जाने का है। दरअसल, तालिबान के अफगानिस्‍तान की सत्‍ता से बेदखल होने के बाद यहां की महिलाओं को कई तरह की आजादी नसीब हुई है, जिसकी कल्‍पना तालिबान हुकूमत में नहीं की जा सकती थी। आज अफगानी महिलाएं वहां की संसद से लेकर विभिन्‍न तरह के कारोबार और कई क्षेत्रों से जुड़ी हैं।