शीतला माता के व्रत एवं पूजा को समर्पित शीतला अष्टमी का पर्व आज मनाया जा रहा है। शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा-अर्चना विधि विधान से की जाती है। इस दिन शीतला माता की पूजा करने से दाह ज्वर, पीत ज्वर, दुर्गन्ध युक्त फोड़े, नेत्रों के सभी रोग, शीतला के फुंसियों के चिह्न तथा शीतला जनित सारे कष्ट-रोग आदि दूर हो जाते हैं। इस दिन माता को बासी भोजन अर्पित किया जाता है, इसलिए इस पर्व का दूसरा नाम बसोड़ा भी है।
यह हर वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। प्राय: यह पर्व होली के 8 दिनों के बाद मनाई जाती है। हालांकि कई जगहों पर लोग होली के बाद पहले सोमवार या शुक्रवार को शीतला अष्टमी मनाते हैं।
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 16 मार्च 2020 दिन सोमवार यानी तड़के 03 बजकर 19 मिनट पर हो चुका है, जो 17 मार्च दिन मंगलवार को तड़के 02 बजकर 59 मिनट तक रहेगी।
पूजा का मुहूर्त
आज अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा के लिए कुल 12 घंटे 01 मिनट का शुभ मुहूर्त बना हुआ है। आज व्रत रखने वाले व्यक्ति सुबह 06 बजकर 29 मिनट से शाम को 06 बजकर 30 मिनट तक शीतला माता की पूजा कर सकते हैं।
कौन हैं शीतला माता
शीतला माता का वाहन गधा है, वह उस पर ही सवार रहती हैं। शीतला माता का एक हाथ झाड़ू और नीम के पत्तों से सुसज्जित रहता है, जबकि दूसरे हाथ में शीतल जल से भरा हुआ एक कलश होता है। शीतला माता की पूजा करने से चेचक, गलघोंटू, बड़ी माता, छोटी माता, तीव्र दाह, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र रोग और शीतल जनित सभी प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं।
शाीतला माता को क्यों अर्पित करते हैं बासी भोजन
शीतला माता को भोग लगाने वाले पकवानों को सप्तमी के दिन यानी शीतला अष्टमी से एक दिन पूर्व ही बना लिया जाता है। माता को बासी पकवानों का भोग लगाया जाता है। उनको बासी भोजन पसंद है। मान्यताओं के अनुसार, शीतला माता को बासी पकवानों का भोग लगाने से शीतला जनित रोगों से प्रभावित व्यक्तियों को लाभ मिलता है और वे जल्द निरोग हो जाते हैं। शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा न जलाने की परंपरा है।